अनुवाद शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'वद' धातु में 'अनु' उपसर्ग लगाने से हुई है, जिसका अर्थ है - कही गई बातों को दोबारा कहना। कालांतर में किसी एक भाषा के पाठ को दूसरी भाषा में परिणत करने की कला को अनुवाद कहा जाने लगा। किसी भाषा के अवतरण का किसी अन्य भाषा में अनुवाद करना वास्तव में एक कला है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अनुवाद शब्द या वाक्य के मूल भाव को अपने अंदर समाहित करता है। अनुवाद के दौरान अक्सर हम शब्दों या वाक्यों के अनुवाद को अधिक महत्त्व देने की गलती कर बैठते हैं और ऐसे में कभी-कभी मूल पाठ के भाव की अभिव्यक्ति नहीं हो पाती है। एक अनुवादक के तौर पर हमें इससे बचते हुए अवतरण के मूल भाव को शब्दों में पिरोने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि, अनुवाद के दौरान हम कई बार किसी शब्द का अर्थ ढूँढने में उलझ जाते हैं, ख़ासकर हिंदी अनुवाद के दौरान हम शब्दों के तत्सम पर्याय का प्रयोग करते हैं जो आम बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त नहीं होते हैं। इससे बचने के दो तरीके हैं - पहला यह कि हम उस शब्द के अर्थ को अपनी भाषा में लिखने की कोशिश करें और दूसरा तरीका यह है कि उस शब्द का लिप्यंतरण किया जाए। अनुवाद के कई प्रकारों में शब्दानुवाद, भावानुवाद एवं सारानुवाद महत्वपूर्ण हैं, जिनमें भावानुवाद को अधिक मान्यता दी गई है और इसमें सिद्धहस्त होना वाकई एक कला है।
- Mr. Rajni Jha